Wednesday 19 May 2021

75 हजार करोड़ का महादान

 

महँगाई बढ़ने का प्रमुख कारण है-माँग और पूर्ति के बीच असंतुलन होना। जब किसी वस्तु की आपूर्ति कम होती है और माँग बढ़ती है तो वस्तुओं का मूल्य स्वयमेय बढ़ जाता है क्योंकि अधिक क्रयशक्ति रखने वाले लोग उसे ऊँचे दाम पर खरीद लेते हैं। प्राकृतिक प्रकोप जैसे-बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि भूकंप आदि महँगाई बढ़ाने में सहायक होते हैं।



महंगाई का अर्थ होता है- वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होना। महंगाई एक ऐसा शब्द होता है जिसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आते हैं। ... हमारी आवश्यकता की वस्तुएँ बहुत महंगी आती हैं और कभी-कभी तो वस्तुएँ बाजार से ही लुप्त हो जाती हैं। लोग अपनी तनखा में वृद्धि की मांग करते हैं लेकिन देश के पास धन नहीं है।


जिस प्रकार हवा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मौजूद है, ठीक उसी प्रकार महंगाई चप्पे-चप्पे में व्याप्त है। जिस प्रकार हवा को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, उसी प्रकार महंगाई का केवल अनुभव किया जा सकता है, जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार महंगाई, रंगहीन, गंधहीन नहीं होती। महंगाई को देखा जा सकता है। इसके प्रभाव से मिर्ची लाल हो जाती है और हल्दी पीली पड़ने लगती है।


संघर्ष का दूसरा नाम ही जीवन है। मनुष्य को जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से कुछ समस्याएँ अल्पकालिक होती हैं तो कुछ आजीवन चलती हैं। गरीब और मध्यम वर्ग के लिए ऐसी ही दीर्घकालिक परेशानी का नाम है-महँगाई।


महँगाई बढ़ने का प्रमुख कारण है-माँग और पूर्ति के बीच असंतुलन होना। जब किसी वस्तु की आपूर्ति कम होती है और माँग बढ़ती है तो वस्तुओं का मूल्य स्वयमेय बढ़ जाता है क्योंकि अधिक क्रयशक्ति रखने वाले लोग उसे ऊँचे दाम पर खरीद लेते हैं। प्राकृतिक प्रकोप जैसे-बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि भूकंप आदि महँगाई बढ़ाने में सहायक होते हैं।


इसी तरह बढ़ रही महंगाई के कारण देश के जनता के सामने क्रय शक्ति का अभाव हो जाता है इसी तरह शक्ति को पूर्ति करने के लिए केंद्र सरकार अपने सूचकांक के आधार पर कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ता का निर्धारण करती है इसकी घोषणा प्रत्येक वर्ष जनवरी तथा जुलाई माह में किया जाता है !


जब सरकारी कर्मचारियों की महंगाई भत्ता में वृद्धि होती है तो कहा जाता है कि 

- सरकारी कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले 

- सरकारी कर्मचारियों की चांदी 

- सरकार पर महंगाई भत्ता बढ़ने से बड़ा बोझ 

- सरकारी कर्मचारियों को तोहफा 

- सरकारी कर्मचारियों के दिवाली पर होली  

- होली से पहले दिवाली 

- इससे राजस्व पर 35000 करोड़ का बोझ पड़ेगा 

......इत्यादि इत्यादि ना जाने क्या-क्या लिखा जाता है !


इस तरह के समाचार लिखे जाने से व्यापारी जगत में कर्मचारियों से ईर्ष्या होने लगती है , उन्हें लगता है कि सरकार बिना कमाए ही उन्हें मालामाल कर रही है ! जबकि हकीकत यह है कि जो कर्मचारियों की हक में होता है उससे भी कम सरकार द्वारा दिया जाता है !


लेकिन जनता को सरकार की कड़वी हकीकत अभी तक मालूम ही नहीं है की सरकार ने कर्मचारियों को अपने हक का ₹75000 करोड़ रुपए 18 महीनों से दिया ही नहीं, इतना पैसा कर्मचारी के खातों में कभी नहीं आएगा ! इतना ही नहीं कोरोना के नाम पर कर्मचारियों की मिलने वाले वेतन से भी 1 दिन का वेतन काट दिया गया ! जबकि लॉकडाउन हो या बंदी, कर्मचारियों को अपने जान जोखिम में डालकर Duty पर जाना ही होता है, बल्कि इसका असर उनके जान देकर या घर पर क्यों न हो ! यह समाचार आप cominghindinews.blogspot.com पर पढ़ रहे हैं !

जब सरकार ने ऐसा कर दिया तो कोई बोलने को तैयार नहीं कोई कर्मचारियों को हक में आवाज नहीं उठा रहा कोई यह नहीं कह रहा है कि कर्मचारी कोरोना काल में ₹75000 करोड़ रुपया सरकार को दान में दे दिया ! इस पर चौथे स्तंभ कहे जाने वाले न्यूज़ चैनलों का कलम बंद हो रही है ! हाथों से कुछ लिखा नहीं जा रहा है कि 

- सरकार द्वारा कर्मचारियों के 18 माह का महंगाई भत्ता नहीं दिए जाने से 75 हजार करोड़ रूपया का लाभ होगा !  

- इस कोरोना महामारी के चलते सरकार को कर्मचारियों ने 75000 करोड़ रुपया दान में दिया ! 

सारी जनता अपने घरों में बैठी बैठी है जबकि सरकारी कर्मचारी जान जोखिम में डालकर आवश्यक वस्तुओं, सेवाएं और चीजें जरूरतमंदों तक पहुंचाने में मदद कर रही है वह भी अपने परिवार की भविष्य और जिंदगी दांव पर लगाकर 18 महीने से ₹75000 करोड़ काटने के बावजूद उनका अगला किस्त कब मिलेगा कोई पता नहीं ! 

इससे उनके मनोबल का प्रभाव पड़ रहा है ! क्या इस वजह से मानसिक रूप से नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा ? उनके क्षमता निष्पादन का प्रभाव नहीं पड़ेगा ?अधिक समाचार पढ़ने के लिए गूगल में cominghindinews.blogspot.com पर सर्च करें !

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