Saturday, 1 April 2023

बागेश्वर वाले बाबा की जन्म कुंडली एवम प्राप्त सिद्धियां

बागेश्वर वाले बाबा की जन्म कुंडली

पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जन्मतिथि और उसके अनुसार जो उनकी कुंडली बताई जा रही है उस के आधार पर मैं यह साबित कर सकता हूं कि शास्त्री जी सच्चे संत हैं। उन्हें निश्चित रूप से कुछ सिद्धियां भी हासिल हैं, यह बात भी उनकी कुंडली साबित कर रही है। कुंडली के जरिए साबित हो रही इन बातों को वही व्यक्ति स्वीकार कर सकता है जो ज्योतिष शास्त्र को वैज्ञानिक मानता हो... अन्यथा तमाम दुराग्रही और वामपंथी तो ज्योतिष को भी पाखंड ही बता देंगे... ऐसे लोगों को मैं याद दिलाना चाहूंगा कि यह मामला काफी पहले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट में ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता माननीय श्री के एन राव ने अपने अकाट्य तर्कों के माध्यम से स्वयं बहस करते हुए यह साबित किया था कि ज्योतिष एक विज्ञान है। यह तथ्य पर पढ़ रहे हैं।

तो मेरा कहना है कि जो भी व्यक्ति ज्योतिष को विज्ञान मानता है और जिसे इस शास्त्र की गहराइयों का ज्ञान है, ऐसा व्यक्ति शास्त्री जी की कुंडली परखने के बाद यदि यह चुनौती देता है कि धीरेंद्र शास्त्री संत (ईश्वर के परम भक्त) नहीं हैं, अथवा उन्हें कोई सिद्धि प्राप्त नहीं है... तो ऐसी किसी भी चुनौती को मैं बड़ी विनम्रता से स्वीकार करना चाहूंगा.... ज्योतिष के माध्यम से मैं साबित करना चाहूंगा कि शास्त्री जी की कुंडली उनके भीतर बसे वैराग्य और पूर्ण भक्ति के भाव को न सिर्फ पूरी तरह साबित करती है बल्कि यह भी साबित करती है कि इस जातक को निश्चित रूप से अति विशिष्ट सिद्धियां भी प्राप्त हुई हैं, जिसके जरिए उनके द्वारा किए जाने वाले कुछ कार्य लोगों को चमत्कार जैसे दिखाई पड़ रहे हैं।


आइए, मैं बहुत संक्षेप में इस कुंडली में उपस्थित कुछ विशिष्ट योगों के बारे में आपको बता दूं, जो योग शास्त्री जी की सच्चाई को बहुत सहजता से साबित करते हैं। यहां मैं उनकी लग्न कुंडली और चंद्र कुंडली दोनों की चर्चा करना चाहूंगा। सबसे पहले तो लग्न कुंडली पर ध्यान दीजिए.... कर्क लग्न वाली इस कुंडली के पंचमेश मंगल त्रिकोण और केंद्र दोनों के स्वामी हैं। यह मंगल चतुर्थेश शुक्र के साथ एकादश भाव में बैठकर राजयोग बना रहे हैं। एकादश भाव के स्वामी भी स्वयं क्योंकि शुक्राचार्य जी ही हैं इस वजह से यहां यह राजयोग भंग नहीं हो पाया है। गौरतलब है कि मंगल और शुक्र की संपूर्ण सप्तम दृष्टि पंचम स्थान पर पड़ रही है, और यही दृष्टियां साबित करती हैं कि यह व्यक्ति हनुमान जी का परम भक्त भी है।

आइए.. अब इनकी चंद्र कुंडली पर चलते हैं।

चंद्र कुंडली इनकी लग्न कुंडली की अपेक्षा ज्यादा प्रभावशाली है। कुंभ राशि वाली यह चंद्र कुंडली इसलिए प्रभावशाली है क्योंकि सूर्य कुंडली के स्वामी बुध और चंद्र राशि के स्वामी शनि आपस में मित्र हैं। चंद्र कुंडली पर यदि ध्यान देंगे तो पाएंगे कि नवमेश अर्थात धर्म स्थान के स्वामी शुक्र और 10वें स्थान अर्थात कर्म भाव के स्वामी मंगल शानदार युति बनाकर चतुर्थ में कुछ इस तरह से विराजमान हैं जैसे केंद्रीय मंत्रिमंडल में मोदी और अमित शाह जी की जोड़ी हो,,, उच्च स्तर का राजयोग बना रहे यह दोनों ग्रह दसवें भाव को संपूर्ण सप्तम दृष्टि से देख भी रहे हैं,, इस तरह से यह एक ऐसा राजयोग बन गया है जो यह भी बता रहा है कि इस व्यक्ति की आजीविका भी धर्म के कार्य से जुड़ी हुई है,, अर्थात यह कथा भागवत कह कर और ईश्वर की सेवा में लगे रहकर ही अपने परिवार के लिए जिविकोपार्जन भी करते हैं। शुक्र और मंगल का यह राजयोग न सिर्फ दसवें स्थान पर अपनी पूरी दृष्टि डाल रहा है बल्कि दसवें से 10वें स्थान अर्थात सप्तम भाव पर भी मंगल की पूर्ण चतुर्थ दृष्टि पड़ रही है।

इस कुंडली के अनुसार वर्तमान में शास्त्री जी की गुरु की महादशा और शुक्र की अंतर्दशा चल रही है। ज्योतिष के जानकार इस बात को आसानी से समझ सकते हैं कि इस महादशा और अंतर्दशा को "सोने में सुहागा" माना जा सकता है। देवगुरु बृहस्पति और शुक्राचार्य जी की दशाओं ने मिलकर जो ज्ञान और तार्किकता धीरेंद्र शास्त्री जी को दी है उसे देख कर आज पूरा भारत हतप्रभ है, और भारी संख्या में लोग उनके ज्ञान का आनंद भी ले रहे हैं।


जैसा कि मैं पहले भी इस पटल पर लिख चुका हूं कि धर्म स्थान का स्वामी राजयोग बना रहा हो और लग्नेश तथा तृतीय अथवा अष्टम के स्वामी का भी इनको योगदान मिल रहा हो तो ऐसे व्यक्ति को अनुकूल दशाएं आने पर आसानी से सिद्धियां भी प्राप्त हो सकती हैं,,, ऐसी ही विशेष ईश्वरीय कृपा को बहुत लोग चमत्कार कहते हैं। इस कुंडली में भाग्येश शुक्र और कर्मेश मंगल अपनी युति से राजयोग तो बना ही रहे हैं, साथ ही इसमें लग्नेश शनि की भूमिका भी शामिल हो गई है। अर्थात राशि के स्वामी शनि महाराज की तीसरी शुभ दृष्टि शुक्र और मंगल पर संपूर्ण रूप से पड़ रही है।


अब दूसरे बिंदु पर आते हैं.. यह जातक क्या वास्तव में वैराग्य के भाव से परिपूर्ण है ?? क्योंकि तभी इन्हें संत माना जा सकता है.... जैसा कि मैं पहले भी इस पटल पर लिख चुका हूं कि वैराग्य का कारक शनि होता है। शनि यदि देवगुरु बृहस्पति, चंद्रमा, लग्न अथवा लग्नेश को पूरी तरह से प्रभावित कर रहा हो तो ऐसा जातक भीतर से वैराग्य की छत्रछाया में समर्पित होता है, अर्थात ऐसे जातक का अंतःकरण संपूर्ण रूप से संन्यासी वाले भाव को आत्मसात कर लेता है। इस कुंडली को देखने पर स्पष्ट रूप से यह योग भी मिल जाता है। क्योंकि शनि की दसवीं दृष्टि जहां गुरु बृहस्पति पर है, वहीं लग्नेश चंद्रमा को भी शनि केतु के माध्यम से पूरी तरह से प्रभावित कर रहा है। लग्न कुंडली को देखिए तो अपनी युति से शनिवत हो चुका केतु अपनी 12वीं दृष्टि चंद्रमा पर और पांचवीं दृष्टि लग्न पर डाल रहा है। युति के कारण केतु शनी के पूरी तरह से प्रभाव में है, इसलिए केतु की यह दृष्टि परोक्ष रूप से शनि का ही पूरा काम कर रही है। इस तरह से इस कुंडली में जातक के वैराग्य भाव को भी ग्रह पूरी तरह से प्रमाणित कर रहे हैं।
साभार

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