शाहरुख से शाहरुख़ तक...
लड़की नहीं माने तो उसके परिवार को डराओ धमकाओ, लड़की नहीं माने तो उसे किडनैप करो, उससे जबरन निकाह करो, लड़की नहीं माने तो उसके सामने विक्टिम होने का ढोंग करो, या कुछ और बनके उसे प्रेम जाल में फंसाओ, लड़की नहीं माने तो उसे मार दो, बाज़ीगर में शाहरुख का किरदार दो लड़कियों की हत्या करता है... शाहरुख का किरदार एक लड़की से प्रेम का ढोंग कर, उसे छत से नीचे फेंक देता है, एक उसकी सहेली जो उसका सच जान गई है उसकी हत्या कर, उसे सूटकेस में भर नदी में फेंक देता है । यह समाचार www.operafast.com पर पढ़ रहे हैं।
फ़िल्म डर में शाहरुख का किरदार, लड़की के करीबियों को डराता है, उन पर हमला करता है, लड़की को मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करता है, क्योंकि वो उससे एकतरफा प्रेम करता है, दोनों ही फिल्मों में नायक से अधिक प्रेम जनता ने खलनायक पर लुटाया था, जिससे अपराधी प्रवृत्ति के युवाओं को मानसिक बल मिला, वो पहले से ही अपने कृत्य को सही मानते थे, और शाहरुख के किरदारों को जनता से इतना प्रेम मिलता देख उनका हौसला, उनका पागलपन और बढ़ गया।
आप सनातनी युवतियों के साथ हुए अपराधों पर गौर करें तो सूटकेस में लाश फेंकना हो, बिल्डिंग से फेंकना हो, या जलाना, या गोली चाकू से मारना हो सब इसी प्रकार की दाऊदवुड फिल्मों की ही देन है, और हां, हमारा समाज दोषी है जिसने मनोरंजन के मोह में अंधे होकर इन वाहियात फिल्मों का भरपूर समर्थन किया... झेलना हमारी बेटियों को पड़ रहा है...
प्रेम के नाम पर की जा रही बेटियों/बहनों की नृशंस हत्याओं की प्रेरणा देने वाली फिल्में भी, उतना ही दोषी हैं जितना उससे प्रेरणा लेने वाले 'शाहरुख़' और उतना ही दोषी है प्रेरणा देने और लेने वाले ऐसे "शाहरुखों" का समर्थन करने वाला ये समाज...
कभी सोचा है, ये लव जेहाद की शुरुआत कहां से हुई ?
शाहरुख़ से शाहरुख़ बदलते रहे, अंकिता/निकिता मरती रहीं, जलती रहीं, सूटकेस में मिलती रहीं... और हम फिल्मी शाहरुख़ को बादशाह बनाते रहे... उसके किरदार द्वारा की गई 'हत्याओं' पर तालियां बजाते रहे...
अगर विचार करेंगे, तो आपको एक पैटर्न दिखेगा, जो वास्तविक संसार में लव जेहाद से जुड़ी हत्याओं में प्रयोग में लाया गया और वो शाहरुख की दोनों फिल्मों में निभाए किरदार द्वारा की गई हत्याओं और उसके तरीकों से मिलता जुलता है। बाज़ीगर में शाहरुख़ का किरदार नाम बदलकर प्रेम का ढोंग करता है शिल्पा शेट्टी के किरदार से, और मकसद पूरा होते ही उसे रजिस्ट्रार की बिल्डिंग से नीचे फेंक देता है, ये कहते हुए कि वो उसे आज़ाद कर रहा है। उसी फिल्म में वो शिल्पा शेट्टी के किरदार की महिला मित्र की भी हत्या कर देता है और उसकी लाश को सूटकेस में भरकर नाले में फेंक देता है।
सूटकेस से कुछ याद आया?
डर में वो एकतरफा प्रेम की सनक में लड़की और लड़के के करीबियों को नुकसान पहुंचाता रहता है। फिल्म में उसे नायक से ज्यादा फुटेज मिली, अच्छे गीत मिले और खलनायक पर फिल्माए गीत आज भी लोग गुनगुनाते हैं।
दोनों फिल्मों में शाहरुख़ का किरदार महिला विरोधी, अपराधी प्रवृत्ति का सनकी था, पर सबसे अधिक प्रचलित वो महिलाओं के बीच ही हुआ। उस दौर में हमारे समाज के लोग अपने बच्चों को बाज़ीगर और डर दिखाने हॉल में जाते थे, शाहरुख़ का किरदार जब हत्याएं करता था तो लोग तालियां बजाते थे। बोलते थे कि क्या गजब एक्टिंग कर रहा है ये लड़का... जब दोनों फिल्मों के अंत में शाहरुख़ का किरदार मरता था तो ये ही जनता एक अपराधी से सहानुभूति दिखाते हुए रोती थी।
लोगों ने उन किरदारों को हीरो से ज्यादा प्रेम दिया। उसका नतीजा, ऐसे अपराधी प्रवृत्ति के युवाओं को लगने लगा कि समाज उनको भी हीरो मानेगा, और जो शाहरुख़ के किरदार ने किया वो सही किया। क्रिमिनल साइकोलॉजी में पढ़ा है, अपराधी स्वयं को कभी गुनहगार नहीं, विक्टिम या हीरो मानता है। दोनों ही फिल्मों में नायक से अधिक प्रेम जनता ने खलनायक पर लुटाया था, जिससे अपराधी प्रवृत्ति के युवाओं को मानसिक बल मिला। वो पहले से ही अपने कृत्य को सही मानते थे, और शाहरुख के किरदारों को जनता से इतना प्रेम मिलता देख उनका हौसला, उनका पागलपन और बढ़ गया।
आप युवतियों के साथ हुए अपराधों पर गौर करें तो सूटकेस में लाश फेंकना हो, बिल्डिंग से फेंकना हो या जलाना हो, या गोली चाकू से मारना हो, सब इसी प्रकार की दाऊदवुड फिल्मों की ही देन है। हां, हमारा समाज भी दोषी है, जिसने मनोरंजन के मोह में अंधे होकर इन वाहियात फिल्मों का भरपूर समर्थन किया।
वो फिल्म थी, अब जो हो रहा है ये असल जीवन है... जिसमें एक जीवन सच में समाप्त होता है... और कुछ लोग फक्र करते हैं, अपराधी को हीरो बुलाते हैं।
"डर" का शाहरुख़ हो या "बाज़ीगर" का शाहरुख़, उसे फिल्म के नायक नायिका से अधिक समर्थन मिला अधिक प्रसिद्धि मिली... जब खलनायकों को आप अपना नायक मानोगे, तो ये ही होगा, और ये ही होता रहेगा...
ये कटु सत्य है... इसे स्वीकार करना पड़ेगा और ऐसे शाहरुखों को दंडित करना पड़ेगा... नहीं तो ये शस्त्रहीन बेटियों/बहनों को मारने वाले फर्ज़ी बाज़ीगर कभी डरेंगे नहीं...!
साभार
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