Thursday, 10 March 2022

यूक्रेन व रूस युद्ध से भारतीय किसानों को चांदी, मिल रहे मनमाना भाव


यूक्रेन व रूस युद्ध से भारतीय किसानों को चांदी, मिल रहे मनमाना भाव
भारतीय प्रधानमंत्री मोदी जी के अनुसार आपदा में अवसर का तलाश करना चाहिए , इसी को देखते हुए भारत के बाजारों से गेहूं की मांग बढ़ी है । यूक्रेन व रूस के बीच हुए युद्ध के असर से गेहूं के दाम में ईजाफा हो गया है। जो किसान मंडियों में गेहूं ला रहे हैं, उन्हें पहले की अपेक्षा अब ज्यादा दाम मिल रहे हैं। कृषि उपज मंडी में गेहूं के दाम अधिकतम में 2321 रुपये क्विंटल तक पहुंच गए हैं। दाम बेहतर मिलने से किसानों के चेहरे खिल उठे हैं। ये समाचार आप www.operafast.com पर पढ़ रहे हैं ।


दरअसल, रूस और यूक्रेन दुनिया में 40 प्रतिशत गेंहू की सप्लाई करते हैं। ऐसे में पंजाब के कारोबारियों को लगता है कि यदि युद्ध लंबा खिंचा तो भारत के गेहूं की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ेगी, जिससे किसानों और व्यापारियों को सही दाम मिलेंगे। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक रूस दुनिया में सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक देश था।

विश्व में गेहूं का निर्यात करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस और यूक्रेन है ।




ये पाँचों देश मिल कर 65 फ़ीसदी बाज़ार पर क़ब्ज़ा जमाए बैठे हैं।

रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश खरीद लेते हैं। जबकि यूक्रेन के गेहूं के खरीददार हैं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया।

अब दुनिया के दो बड़े गेहूं निर्यातक देश, आपस में जंग में उलझे हों, तो उनके ग्राहक देशों में गेहूं की सप्लाई बाधित होना लाज़िमी है। नतीजा ये कि कुछ देशों में गेहूं के दाम तेज़ी से बढ़ने लगे हैं।

भारत जैसे देश में भी पिछले एक सप्ताह में गेहूं के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक हो गए हैं।

यही वजह है कि पीएम मोदी भारत के गेहूं निर्यातकों से 'आपदा में अवसर' की तलाश करने को कह रहे हैं।

इसको कहते हैं बिल्ली के भाग से छींका टूटा ।

भारत के गेहूं व्यापारियों के लिए यह अवसर इसलिए भी है क्योंकि गेहूं की नई फसल बाजार में बस आने ही वाली है ।

यों देखा जाय तो यह आपदा मोदी जी के लिए भी एक अवसर है । यदि दुनिया में गेहूं के भाव ऊपर चले गए और व्यापारियों ने समर्थन मूल्य से ऊपर गेहूं खरीदना शुरू कर दिया तो मोदी जी गेहूं की सरकारी खरीदी की जिम्मेदारी से बच सकते हैं ।

तथापि , यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि भारत भी उसकी आवश्यकता से अधिक गेहूं उपजा रहा है जिसका दुनिया में कोई खरीदार नहीं है क्योंकि उसकी लागत से कम मूल्य पर गेहूं वैश्विक बाज़ारों में उपलब्ध है ।

वहीं भारत को दलहनों के और खाद्य तेल के आयात पर बहुत विदेशी मुद्रा खर्च करना पड़ रही है ।

कदाचित मोदी जी ने इस समस्या के समाधान पर मेहनत की होती तो आज भारत का किसान गेहूं और चावल न उगाते हुए दलहन और तिलहन उगाता जो कि चावल और गेहूं से महंगी फसल है । तब न तो मोदी जी को गेहूं और चावल की सरकारी खरीदी करना पड़ती और न ही दलहन और तिलहन का आयात करना पड़ता । तब भारत भी वैश्विक बाज़ारों से सस्ता गेहूं और चावल ख़रीदता ।

मोदी जी को तो 2014 में सत्ता संभालते ही डेयरी बोर्ड की तरह एक दलहन बोर्ड और एक तिलहन बोर्ड का गठन कर देना चाहिए था ।


लेकिन , वह मोदी जी ने न तो किया और न ही कभी करेंगे । ऐसा करने से भारत के किसानों को सही तरीके से उपज के लिए गाइड लाइन, विक्री के लिए लोकल बाजार , किसानों को खाद बीज उपलब्ध करवाने में आसानी होती ।



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