जिहाद
जिहाद का क्या अर्थ है?
जिहाद (अरबी: جهاد ; जिहाद ) एक अरबी शब्द है। जिसका मतलब अर्थ दीन-ए-हक की और बुलाने और उससे इनकार करनेवाले से जंग करने को या संघर्ष करने को कहते है। ... इस शब्द ने आतंकवादी समूहों द्वारा अपने उपयोग के द्वारा हाल के दशकों में अतिरिक्त ध्यान आकर्षित किया है। इस्लाम में इसकी बड़ी अहमियत है।
जिहाद का अर्थ है खुद की बुराइयों पर विजय पाना. इस्लाम के जानकार मानते हैं कि जिहाद का शाब्दिक अर्थ अत्यधिक प्रयास या exerted effort है. अत्यधिक प्रयास का अर्थ है खुद में बदलाव करने की बड़ी कोशिश. कुछ परिस्थितियों में जिहाद को अत्याचार के खिलाफ खड़ा होना भी बताया जाता है !
जिहाद कितने प्रकार के होते हैं ?
दो तरह के जेहाद बताए गए हैं। एक है जेहाद अल अकबर यानी बड़ा जेहाद और दूसरा है जेहाद अल असग़र यानी छोटा जेहाद और इनमे भी कई प्रकार है।
i) ''दीन' धर्म के बारे में कोई जबरदस्ती नहीं।'' (२ः२५६, पृ. १७२)
ii) ''कह दो : हे काफ़िरों ! मैं उसकी 'इबादत' करता नहीं जिसकी 'इबादत' तुम करते हो; और न तुम ही उसकी 'इबादत' करते हो जिसकी 'इबादत' मैं करता हूँ और न मैं उसकी 'इबादत' करने का जिसकी 'इबादत' तुम करते आए और न तुम उसकी 'इबादत' करने के जिसकी 'इबादत' मैं करता हूँ। तुम्हें तुम्हारा 'दीन' और मुझे मेरा दीन' (१०९ : १-६, पृ. १२०७)
इस्लाम और पैगम्बर मुहम्मद साहब की तरह, जिहाद के भी दो चेहरे हैं जोकि पूरी तरह कुरान पर आधारित हैं। इसका कारण यह है कि कुरान के ११४ सूराओं में से ९० सूरा मुहम्मद साहब पर मक्का में (६१०-६२२ ए. डी.) अवतरित हुए; और बाकी के २४ मदीना में।
इस्लाम एक धर्म-प्रेरित मुहम्मदीय राजनैतिक आन्दोलन है, कुरान जिसका दर्शन, पैगम्बर मुहम्मद जिसका आदर्श, हदीसें जिसका व्यवहार शास्त्र, जिहाद जिसकी कार्य प्रणाली, मुसलमान जिसके सैनिक, मदरसे जिसके प्रशिक्षण केन्द्र, गैर-मुस्लिम राज्य जिसकी युद्ध भूमि और विश्व इस्लामी साम्राज्य जिसका अन्तिम उद्देश्य है। इसीलिए जिहाद की यात्रा अन्तहीन है।
जिहाद आतंकवाद के कौन से प्रकार का एक उदाहरण है?
ये ऐसी ताकतें हैं जो अपनी बात रखवाने के लिए हथियार का सहारा लेती हैं. इसका बड़ा उदाहरण 1980 के दशक में अफगानिस्तान में देखने को मिला जब हजारों मुस्लिम युवा सोवियत यूनियन के खिलाफ जंग में शामिल होने पहुंचे. उनके दिमाग में यह बात थी कि वे जिहाद कर रहे हैं !
विश्व के मुसलमान जिहाद को अलग नजरिए से देखते हैं ज्यादातर मुसलमान ना तो कुरान का अध्ययन किए हैं और ना ही इसके बारे में विशेष जानकारी रखते हैं उनके बीच जिहाद के अलग-अलग धारणाएं हैं कुछ लोगों के हिसाब से काफिरों के खिलाफ चलाया गया अभियान जिहाद कहलाता है !
जबकि कुरान में इसका जिक्र बहुत ही साफ है. जिहाद का अर्थ है खुद की बुराइयों पर विजय पाना !
जिहाद का नारा किसने दिया ?
बाबर ने अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए मदिरा पीने और बेचने पर प्रतिबंध की घोषणा कर मदिरा के सभी पात्रों को तुड़वाकर मदिरापान न करने की कसम ली और मुसलमानों से 'तमगा कर'(एक प्रकार का व्यापारिक कर, जिसे राज्य द्वारा लगाया जाता था) न लेने की घोषणा की। साथ ही बाबर ने राणा सांगा के विरुद्ध 'जिहाद' का नारा भी दिया।
लव जिहाद का अर्थ क्या है?
लव एक अंग्रेजी शब्द है जिसका मतलब होता है प्यार और जिहाद एक अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है किसी मकसद को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देना. यानि सिंपल भाषा में लव जिहाद का मतलब समझे तो यह है कि किसी लड़की को अपना कोई खास मकसद पूरा करने के लिए अपने प्यार के जाल में फंसाना और उसका धर्म परिवर्तन करवाना !
क्या बादशाह अकबर हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के डर से नहीं गया था?
जी नहीं, न तो अकबर प्रताप से डरता था, न ही प्रताप अकबर से।
अकबर हिंदुस्तान का बादशाह था और इतना ताकतवर था की बगदाद का खलीफा जो कि पूरी दुनिया के इस्लाम का बादशाह और धार्मिक सर्वेसर्वा था, वो भी अकबर से थर्राता था।
अकबर दुनिया में किसी से नहीं डरता था। पूरे यूरोप में भी उस समय जितने राजा थे, अकबर के सामने उनकी कोई हैसियत नही थी। मंगोल फौजें, जिनसे दुनिया कांपती थी, वे भी भारत से टकराने की हिम्मत नही करते थे।
उस समय भारत का विश्व जीडीपी में योगदान 27 प्रतिशत तक था। सैनिक और आर्थिक, दोनों ही तरह से हिंदुस्तान, विश्व की सबसे ताकतवर सभ्यता था। आज के संयुक्त राज्य अमेरिका से भी अधिक ताकतवर।
दूसरी ओर महाराणा प्रताप था। जिसके पास कुछ भी नही था सिवाय एक छोटे से राज्य मेवाड़ के अलावा। वो भी बिना किले के, क्यों की चितौड़गढ़ पर मुगलों का अधिकार था।
परंतु प्रताप के पास अगर कुछ था तो वो था अदम्य साहस।
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दुनिया की ताकत एक तरफ और प्रताप की हिम्मत एक तरफ। एक ही आदमी था जिसने अकबर को टक्कर दी।
उम्र मे अकबर महाराणा प्रताप से बड़ा था और युद्ध मे बादशाह सिर्फ एक उम्र तक ही जाते थे हालांकि इस नियम के अपवाद भी देखे गए हैं । हल्दीघाटी मे अकबर ने अपने सर्वाधिक विश्वासपात्र और बेहद काबिल सेनानायक जयपुर के राजपूत राजा सवाई मान सिंह को भेजा था और साथ मे युवा शहजादा भी था जो कि स्वयं बादशाह का प्रतिनिधित्व कर रहा था। इनकि सुरक्षा मे अपने आप को सीधे पैगंबर मुहम्मद के वंशज मानने वाले मुगल सेना के सैय्यद योद्धाओं को, जो कि सदैव जिरहबख्तर और नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रहते थे तथा अतिविकट योद्धाओ में गिने जाते थे, को भेजा गया।
हल्दीघाटी के युद्ध मे प्रताप की राजपूत सेना, जिसमे हिन्दुओ की एक प्राचीन दुस्साहसी और आत्मघाती चारण जाति के योद्धा भी शामिल थे और सबसे आगे लड़ रहे थे, ने शुरू के हमले मे अपने से कई गुना ताकतवर मुगल सेना को करीब सोलह कोस तक भागने पर मजबूर कर दिया। बाद मे पीछे हटती हुई सैयदीयों की टुकड़ियों को लगा कि इससे उनकी बहादुर कौम की बेइज्जती होगी सो उन्होंने मौत को गले लगाना बेहतर समझा और राजपूतों से भिड़ गए ।
इधर मानसिंघ ने ये शोर फैला दिया कि जहाँपनाह युद्ध मे खुद आ पहुंचे है, जिससे मुगल सेना का मनोबल बढ़ गया। प्रताप के हमले मे मुगल शहजादा बाल बाल बचा। मुगल इतिहासकार बदायूनी, जो कि हल्दीघाटी मे मौजूद था, उसने लिखा है कि ग्वालियर के राजा राम सिंह तंवर, जिसकी तीनों पीढ़िया इस युद्ध मे शामिल थी और शहीद हुई , का पौत्र शालीवाहन तंवर इस कदर बहादुरी से लड़ा कि उसका वर्णन करना कलम की औकात से बाहर है। युद्ध का उद्देश्य प्रताप को मारना या पकड़ना था, उसे पूरा करना तो दूर रहा, एक समय युद्ध मे संसार की सबसे ताक़तवर मानी जाने वाली मुगल सेना के लिए अपनी इज्जत कायम रखना मुश्किल हो गया था। युद्ध में लड़ाकू हाथी से हुई भिड़ंत मे चेतक के पैर कटने से बुरी तरह घायल होने पर, प्रताप के एक योद्धा झाला मान ने महाराणा से उनका शिरस्त्राण छीन लिया जिससे शत्रु उसे ही प्रताप समझे और उन्हे अपनी सौगंध दिला कर युद्ध से निकल जाने पर मजबूर कर दिया ताकि हिन्दू संघर्ष जारी रहे। यदि प्रताप पकड़े या मारे जाते तो हिन्दुओ के संघर्ष पर सदा के लिये विराम लग जाता क्योंकि फिर कोई नहीं बचता जो कि धर्मध्वजा को उठाए रखे। हिंदुओं की उम्मीद ही समाप्त हो जाती। इसलिए प्रताप ने युद्ध से निकल कर संघर्ष जारी रखना उचित समझा। प्रताप के न पकड़े और न ही मारे जाने पर अकबर इतना नाराज़ हुआ कि उसने अपने सर्वाधिक प्रिय सिपहसालार मान सिंह से छह महीने तक बात तक नहीं की।
अपनी पूरी जिंदगी प्रताप को पकड़ने के लिए अकबर झूझता रहा पर हमेशा असफल रहा। दूसरी ओर छापामार युद्ध जारी रखते हुए प्रताप ने अपने राज्य मेवाड़ के संपूर्ण हिस्से पर कब्जा कर लिया सिवाय चित्तौड़गढ़ के किले को छोड़ के।
कोई किसी से नही डरता था लेकिन अकबर की हिम्मत के पीछे हिंदुस्तान की फौजी ओर आर्थिक ताकत थी। परंतु प्रताप की हिम्मत अकबर से हजारों गुना अधिक थी। यही कारण था कि अकबर के मन में भी महाराणा के लिए अत्यधिक सम्मान था।
कुछ न होते हुए भी दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान से लड़ना केवल अदम्य साहस से ही संभव है।
इसीलिए प्रताप को हिंदुओं का सूर्य कहा जाता है।
वो आज भी हर हिंदू के हृदय में अपनी पूरी ताकत से चमकता है।
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