पटना,26 दिसम्बर। बिहार भर के अदालतों के कर्मचारी अपने बेहतर वेतनमान औऱ पदोन्नति के लिए 16 जनवरी से हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है।
कर्मचारियों की आपातकालीन बैठक आज बांकीपुर स्थित व्यवहार न्यायालय स्थित संघ कार्यालय में हुई जिसमें सभी जिलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया एवं सर्वसम्मति से अपनी चार सूत्री मांगों के समर्थन में हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है।
बिहार राज्य व्यवहार न्यायालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष राजेश्वर तिवारी ने आज यहां कहा कि न्यायालय के कर्मचारी पटना उच्च न्यायालय की उदासीनता एवं राज्य सरकार की हठधर्मिता के कारण पूरे राज्य की अधीनस्थ अदालतों के कर्मचारी हड़ताल पर जाने को विवश हो गए है।
उन्होंने विधि सचिव की 20 दिसम्बर के सकारण आदेश की भर्त्सना की है,जिसमें न्यायिक कर्मियों की वेतन बढ़ोतरी की पटना उच्च न्यायालय की अनुशंसा अमान्य कर दी गई है । अभी तक पटना उच्च न्यायालय एवं राज्य सरकार ने न्यायिक कर्मचारियों के बेहतर वेतनमान औऱ पदोन्नति के लिए पहल नहीं किया है।
श्री तिवारी ने कहा कि पिछले 30 सालों से न्यायिक कर्मचारियों को प्रोन्नति एवं उनके योग्यता के अनुसार वेतन ही नहीं दिया गया है। उन्होंने ने बताया कि वर्ष 1985 के पूर्व सचिवालय, उच्च न्यायालय के सहायकों एवं न्यायालय के लिपिकों का योग्यता मैट्रिक थी एवं वेतनमान समान था, वर्ष 85 सभी की योग्यता स्नातक डिग्री कर दी गई और सचिवालय एवं उच्च न्यायालय के सहायकों का वेतनमान बढ़ाया गया और जिला अदालतों के कर्मचारियों को वेतनमान और निम्नतर कर दिया गया और प्रोन्नति के दरवाजे बंद कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि हर न्यायमण्डल के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी जिस पद पर बहाल होते है उसी पद पर सेवानिवृत्त हो रहे है।
पटना उच्च न्यायालय ने न्यायालय के कर्मचारियों के वेतन और प्रोन्नति के मामलों को दशकों से लटका रखा है और अनुकंपा नियुक्ति पर भी रोक लगा दी है। उन्होंने स्नातक वेतनमान, प्रोन्नति, अनुकंपा नियुक्ति एवं प्रोन्नति के लिए सेवा शर्त नियमावली में संशोधन की अविलंब मांग की है जिससे न्यायालयों में कर्मचारी गरिमापूर्ण कार्य संपादित कर सके।
न्यायालय में अवसादपूर्ण कार्यप्रणाली ने सभी कर्मचारियों को रोगग्रस्त कर दिया है और उचित वेतन और प्रोन्नति के अभाव में कई कर्मचारी काल कलवित होते जा रहे है।
न्यायालय के कर्मचारियों को चौबीसों घंटे और सालों कार्य करना पड़ रहा है और छुट्टियों के दिन भी अभियुक्तों को रिमांड कराने, प्रोटोकॉल ड्यूटी सहित कई कार्य करना पड़ता है।
श्री तिवारी ने कहा कि प्रायः सभी न्यायमण्डल के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को प्रोन्नति ही नहीं मिली है और न्यायालय के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी अधिकांश स्नातक डिग्री हासिल कर नौकरी कर रहे है और कुछ विधि स्नातक भी हैं।
कर्मचारी नेता ने खेद व्यक्त किया कि आजतक पिछले 30 सालों से न्यायालय के कर्मचारियों की प्रोन्नति के लिए पटना उच्च न्यायालय में कोई सकारात्मक पत्र निर्गत किया हो या विधि विभाग ही कोई स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किया हो।
उन्होंने कहा कि पटना उच्च न्यायालय हो चाहे विधि विभाग हो हर बार कर्मचारियों की प्रोन्नति की संचिका पर टांग ही अड़ाने के कारण सभी न्यायमण्डल के कर्मचारियों द्वारा प्रोन्नति या अनुकम्पा नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल किया है जो वर्षों तक लंबित है।
अतः न्यायिक कर्मचारियों ने स्नातक स्तर का वेतन एवं वेतन विसंगति के मामले के निराकरण एवं शेट्टी कमीशन की अनुशंसा के आलोक में कालबद्ध पदोन्नति एवं मृत कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकम्पा के आधार पर शीघ्र नौकरी को लेकर राज्यभर की अधीनस्थ अदालतों में अपना आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया है।
कर्मचारी संघ के अध्यक्ष ने कहा कि वेतन विसंगति एवं पदोन्नति के लिये स्पष्ट निर्देश के लिए मुख्य न्यायाधीश एवं महानिबंधक पटना उच्च न्यायालय से बार बार मांग पत्र सौंपा गया है। बिहार सरकार के विधि सचिव एवं वित्त सचिव से भी स्पष्ट मार्गदर्शन देने का अनुरोध किया गया है।
संघ के अध्यक्ष ने कहा कि मांगों के विपरीत राज्य सरकार द्वारा विभिन्न न्यायमण्डलों से किसी मुद्दे पर मांगे गए मार्गदर्शन के आलोक में हर बार अलग अलग पत्र जारी कर न्यायिक कर्मचारियों के मुद्दे को और जटिल बना दिया गया है।
उन्होंने बताया कि न्यायिक कर्मचारियों के वेतन और पदोन्नति के लिए गठित केंद्रीयकृत समिति भी अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं ले सकी है और उसे भी मार्गदर्शन की ही प्रतीक्षा है।
श्री तिवारी ने कहा कि राज्य भर के न्यायिक कर्मचारियों को दशकों से उचित वेतनमान और पदोन्नति से वंचित रखा गया है और अदालतों को न्यायिक कर्मचारियों के लिए यातनागृह बना दिया गया है।
उन्होंने बताया कि विभिन्न न्यायमण्डलों में उच्चतर पदों पर कर्मचारियों को प्रभारी बनाकर कार्य संपादित कराया जा रहा है और उच्चतर पद के अनुरूप वेतन से वंचित कर दिया गया है। इससे कर्मचारियों में गहरा आक्रोश एवं अवसाद हैं।
उन्होंने विधि सचिव की 20 दिसम्बर के सकारण आदेश की भर्त्सना की है,जिसमें न्यायिक कर्मियों की वेतन बढ़ोतरी की पटना उच्च न्यायालय की अनुशंसा अमान्य कर दी गई है । अभी तक पटना उच्च न्यायालय एवं राज्य सरकार ने न्यायिक कर्मचारियों के बेहतर वेतनमान औऱ पदोन्नति के लिए पहल नहीं किया है।
श्री तिवारी ने कहा कि पिछले 30 सालों से न्यायिक कर्मचारियों को प्रोन्नति एवं उनके योग्यता के अनुसार वेतन ही नहीं दिया गया है। उन्होंने ने बताया कि वर्ष 1985 के पूर्व सचिवालय, उच्च न्यायालय के सहायकों एवं न्यायालय के लिपिकों का योग्यता मैट्रिक थी एवं वेतनमान समान था, वर्ष 85 सभी की योग्यता स्नातक डिग्री कर दी गई और सचिवालय एवं उच्च न्यायालय के सहायकों का वेतनमान बढ़ाया गया और जिला अदालतों के कर्मचारियों को वेतनमान और निम्नतर कर दिया गया और प्रोन्नति के दरवाजे बंद कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि हर न्यायमण्डल के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी जिस पद पर बहाल होते है उसी पद पर सेवानिवृत्त हो रहे है।
पटना उच्च न्यायालय ने न्यायालय के कर्मचारियों के वेतन और प्रोन्नति के मामलों को दशकों से लटका रखा है और अनुकंपा नियुक्ति पर भी रोक लगा दी है। उन्होंने स्नातक वेतनमान, प्रोन्नति, अनुकंपा नियुक्ति एवं प्रोन्नति के लिए सेवा शर्त नियमावली में संशोधन की अविलंब मांग की है जिससे न्यायालयों में कर्मचारी गरिमापूर्ण कार्य संपादित कर सके।
न्यायालय में अवसादपूर्ण कार्यप्रणाली ने सभी कर्मचारियों को रोगग्रस्त कर दिया है और उचित वेतन और प्रोन्नति के अभाव में कई कर्मचारी काल कलवित होते जा रहे है।
न्यायालय के कर्मचारियों को चौबीसों घंटे और सालों कार्य करना पड़ रहा है और छुट्टियों के दिन भी अभियुक्तों को रिमांड कराने, प्रोटोकॉल ड्यूटी सहित कई कार्य करना पड़ता है।
श्री तिवारी ने कहा कि प्रायः सभी न्यायमण्डल के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को प्रोन्नति ही नहीं मिली है और न्यायालय के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी अधिकांश स्नातक डिग्री हासिल कर नौकरी कर रहे है और कुछ विधि स्नातक भी हैं।
कर्मचारी नेता ने खेद व्यक्त किया कि आजतक पिछले 30 सालों से न्यायालय के कर्मचारियों की प्रोन्नति के लिए पटना उच्च न्यायालय में कोई सकारात्मक पत्र निर्गत किया हो या विधि विभाग ही कोई स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किया हो।
उन्होंने कहा कि पटना उच्च न्यायालय हो चाहे विधि विभाग हो हर बार कर्मचारियों की प्रोन्नति की संचिका पर टांग ही अड़ाने के कारण सभी न्यायमण्डल के कर्मचारियों द्वारा प्रोन्नति या अनुकम्पा नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल किया है जो वर्षों तक लंबित है।
अतः न्यायिक कर्मचारियों ने स्नातक स्तर का वेतन एवं वेतन विसंगति के मामले के निराकरण एवं शेट्टी कमीशन की अनुशंसा के आलोक में कालबद्ध पदोन्नति एवं मृत कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकम्पा के आधार पर शीघ्र नौकरी को लेकर राज्यभर की अधीनस्थ अदालतों में अपना आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया है।
कर्मचारी संघ के अध्यक्ष ने कहा कि वेतन विसंगति एवं पदोन्नति के लिये स्पष्ट निर्देश के लिए मुख्य न्यायाधीश एवं महानिबंधक पटना उच्च न्यायालय से बार बार मांग पत्र सौंपा गया है। बिहार सरकार के विधि सचिव एवं वित्त सचिव से भी स्पष्ट मार्गदर्शन देने का अनुरोध किया गया है।
संघ के अध्यक्ष ने कहा कि मांगों के विपरीत राज्य सरकार द्वारा विभिन्न न्यायमण्डलों से किसी मुद्दे पर मांगे गए मार्गदर्शन के आलोक में हर बार अलग अलग पत्र जारी कर न्यायिक कर्मचारियों के मुद्दे को और जटिल बना दिया गया है।
उन्होंने बताया कि न्यायिक कर्मचारियों के वेतन और पदोन्नति के लिए गठित केंद्रीयकृत समिति भी अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं ले सकी है और उसे भी मार्गदर्शन की ही प्रतीक्षा है।
श्री तिवारी ने कहा कि राज्य भर के न्यायिक कर्मचारियों को दशकों से उचित वेतनमान और पदोन्नति से वंचित रखा गया है और अदालतों को न्यायिक कर्मचारियों के लिए यातनागृह बना दिया गया है।
उन्होंने बताया कि विभिन्न न्यायमण्डलों में उच्चतर पदों पर कर्मचारियों को प्रभारी बनाकर कार्य संपादित कराया जा रहा है और उच्चतर पद के अनुरूप वेतन से वंचित कर दिया गया है। इससे कर्मचारियों में गहरा आक्रोश एवं अवसाद हैं।