Wednesday 14 September 2022

पोस्ट ग्रेजुएट चायवाली का धमाल, अग्रेंजी ऑनर्स करने के बाद बेच रही चाय


पोस्ट ग्रेजुएट चायवाली का धमाल, अग्रेंजी ऑनर्स करने के बाद बेच रही चाय ।


जिस विश्वविद्यालय में पढ़ी थी नाज उसी विश्वविद्यालय गेट के सामने बेच रही है चाय ।

दरभंगा में पोस्ट ग्रेजुएट नाज आत्‍मनिर्भर चायवाली की हर तरफ चर्चा में है। दरभंगा जिला के घनश्यामपुर प्रखंड क्षेत्र की पहड्डी बेला गांव की रहने वाली है नाज अंग्रेजी ऑनर्स करने के बाद 10000 की नौकरी छोड़ बेच रही है चाय । ये समाचार www.operafast.com पर पढ़ रहे हैं।


नाज ने पोस्ट ग्रेजुएट की पढाई अंग्रेजी से की है ।



दरभंगा में पोस्ट ग्रेजुएट चाय वाली की चर्चा के बीच अब एक आत्‍मनिर्भर चायवाली भी अब बाजार में सुर्खियां बटोर रही है ।

पोस्ट ग्रेजुएट में अग्रेजी की पढ़ाई करने के बाद नाज को जब महज 10 हजार रुपए की नौकरी मिली तो उन्होंने चाय बेचने का फैसला किया।


इसके पीछे पटना में ग्रेजुएट चाय वाली के नाम से चर्चा में आई मोनो की सफलता की कहानी भी नाज के लिए प्रेरणा बनी जिसके बाद फिर क्या था नाज नौकरी छोड़ परिवार को बिना बताए दरभंगा के ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी, श्याम माई मंदिर के मुख्य रास्ते के किनारे चाय बेचने लगी।


फोटो वाइरल होने के बाद जब घर वालो की इस बात का पता चला तो घर वालो ने नाज को बहुत समझाया बुझाया आप दुकान बंद करो पर वही दूसरे तरफ नाज की भावी सबाना का प्यार और स्पोर्ट नाज को मिलता था ।


नाज ने बताई है की पहले तो अनेकों प्रकार से भय हुआ पर लोगो का सपोर्ट हमें मिलता रहा जिससे आज हम पोस्ट ग्रेजुएट चाय वाली के नाम से जाने जाते है ।


नाज उन तमाम बेरोजगार नवयुवकों के लिए और नव युवतियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है जो बेरोजगारी और बेरोजगारी चिल्लाते हैं और सरकार को कोसते हैं। इस आत्मसम्मानी एवं परिश्रमी युवती ने यह दिखा दिया है कि मेहनत से किया गया कोई भी कार्य सदैव सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है हिकारत की दृष्टि से नहीं।

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की पुत्री जब किसी होटल में एक वेटर का काम कर सकती है तब एक महान भारतीय युवती अपनी आजीविका के लिए चाय क्यों नहीं बेच सकती है।


दरभंगा की रहने वाली नाज ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी से प्राप्त ज्ञान के आधार पर अपने को आत्मनिर्भर करना, हिम्मत और आत्मविश्वास की प्रकाष्ठा है अन्यथा अधिकतर लोग मलाईदार सरकारी नौकरी के पीछे बूढ़े होने तक बाप पर आश्रित और सरकार को गाली दे दे कर अपने निकम्मेपन को छुपाने में लगे रहते हैं। इस नाज से शायद कुछ निकम्मे प्रेरणा ले सकें।


जब से पोस्ट ग्रेजुएट नाज चायवाली की खबरें सोशल मीडिया पर आनी शुरू हुई तब से कुछ लोगों को ये भी बोलते देखा गया है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नही होता है । लेकिन 14 वर्ष में मैट्रिक, 2 वर्ष इंटर , 3 वर्ष ग्रेजुएशन उसके बाद 2 वर्ष पोस्ट ग्रेजुएट । अगर चाय ही बेचना था तो क्या फायदा ऐसी शिक्षा व्यवस्था का। करोड़ों की यूनिवर्सिटी और टीचरो को लाखो में दिए गए सैलरी का । जब यही मापदंड है आत्मनिर्भरता का तो फिर मिडिल स्कूल की पढ़ाई के बाद बेसिक पढ़ाई बंद करके सिखाए की चाय में चीनी कितनी पानी चाहिए , पकोड़ा कैसे तलते है।


वहीं अन्य व्यक्ति के अनुसार जब इतना ही पढ़ी लिखी है तो चाय क्यों बेच रहीं है। अपने समाज के बच्चे को अच्छी शिक्षा देकर खुद किंग मेकर बन जाती। लेकिन नही भैया इन्हे तो पब्लिसिटी चाहिए। मानते हैं देश में गंदी राजनीती हो रहीं है लेकिन रजनीति की वजह से अपनी पब्लिसिटी करना ये कितना जायज है। मैं मानता हूँ इन जैसों का समर्थन करना भी अपराध है। दोस्तों संघर्ष ऐसी होनी चाहिए की कामयाबी खुद चल कर आये।


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