Wednesday 27 July 2022

मजाक बनकर रह गया ये मूल्यांकन सिस्टम ।

  मजाक बनकर रह गया ये मूल्यांकन सिस्टम ।

तीन चार दिनों से कई न्यूज पोर्टलो पर स्टोरी पढ चुका हूँ ,कि फलाँ फलाँ छात्र के 500/500 अंक आये है, 600/600 यानि 100% स्कोर किया है । फिर भी छात्र/छात्रा संतुष्ट नही है । ये समाचार आप www.operafast.com पर पढ़ रहे हैं।


अगर सही तरीके से उत्तर पुस्तिकाओ का मूल्यांकन किया जाये , तो भी केवल मल्टीपल च्वाईस प्रश्नो के अलावा ये किसी भी सूरत संभव नही कि , 100% स्कोर कर लिया जाये ।





Descriptive प्रश्नो का उत्तर देते हुए, भले ही किसी छात्र के पास दुर्लभ "फोटोजेनिक मैमोरी" क्यों ना हो , फिर भी मैथ के अलावा किसी भी सबजेक्ट मे 100% अंक ले पाना संभव नही है ।


पता नही कैसे ,आज के examiner ,आखिर इन उत्तर पुस्तिकाओ का मूल्यांकन करते होंगे ???


इन 99% प्रतिशत, 100% वालो की पोल कुछ ही दिनो बाद खुल जाती है । प्रतियोगी परीक्षाओ मे कहाँ घुस जाती है ये काबिलियत ???

प्री- मेडिकल , इंजीनियरिंग या फिर सिविल सर्विसेज को ही देख लीजिए, प्रश्नो का उत्तर , चार विकल्पो मे से चुनना होता है , तब भी 100% तो छोडिये , 80% स्कोर के लाले पड जाते है । यहाँ तो वस्तुनिष्ठ प्रश्नो को तो छोड ही दिजिए । Descriptive यानि विस्तार पूर्वक उत्तर लिखकर भी पूरे अंक मिल रहे है , क्या लिखने वाले ने कोमा , फुल स्टाॅप , ग्रामर , स्पेलिंग मे एक भी गलती नही करी ????

आजकल तो उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड भी खुलेआम नंबर बाँट रहा है । एक वो वक्त भी था ,सन् 1993- 1994-1995 या बिहार परीक्षा समिति के द्वारा हाई कोर्ट के देख रेख में लिया जाने वाला 1996 , 1997 और 1998 का दसवीं में की परीक्षा । जब 60% प्रतिशत अंक लेकर "फर्स्ट डिवीजन" बनाने मे छक्के छूट जाते थे । और यकीन मानिये , पूरे स्कूल मे बामुश्किल एक या दो जियाले ही ऐसे होते थे , जो "फर्स्ट डिवीजन" ला पाते थे।

ये 98% और 99% प्रतिशत केवल पेरेंट्स को मूर्ख बनाने का सर्कस है । बाद मे जब यही बच्चे मेडिकल , इंजीनियरिंग की प्रतियोगिता मे बैठकर सीट नही निकाल पाते तो ,माता-पिता को लगता है , उनके जीनियस पुत्र अथवा पुत्री के साथ अन्याय हो गया ।


फिर शुरू होता है , रेजोनेंस, आकाश , बंसल से इंस्टीट्यूट्स मे बच्चो को घिसने और अपनी चमडी उतरवाने का गंदा खेल । मगर सीट फिर भी नही मिलती ।

फिर माँ-बाप खुद को बेच डालने के स्तर पर उतर आते है । गाँव की जमीन , मकान बेच डालते है । मोटा कर्जा उठाते है , भ्रष्टाचार की गंदी गटर मे कूदकर पैसा उलीचते है , कि येन केन प्रकारेण बच्चे को मेडिकल /इंजीनिरिंग करने यूक्रेन, रूस, चीन , बांग्लादेश भेजना है , क्योंकि उनका नौनिहाल दसवीं मे 99% और बारहवीं मे 98% लाया था । जबकि हकीकत ये है कि उनका 99% लाने वाले शूरमा , "कंबाईंड ग्रेजुएट लेवल" स्टाफ सलेक्शन कमीशन की प्रतियोगी परीक्षा मे 80 और 90% तो छोडिये , 60% भी नही ला पाता ।

माता -पिता से कहूंगा ,कि फालतू के सपने मत पालो , बच्चो की नंबर की दौड़ मे डालकर ,उनके सर्वांगीण विकास , शारिरिक क्षमता , स्पोर्ट्स , और एक्सट्रा कैरिकुलर्स पर ध्यान दो । जीवन मे उन्हें जो बनना होगा वो अपने आप बन जायेंगें । हर बच्चा सुंदर पिचाई नही होता , हर बच्चा अपने आप मे यूनिक है । केवल इंजीनियर और डाॅक्टर बनकर ही लोग सफल नही कहलाते , जीवन मे कुछ करने को हजारों फील्ड है , नाम और शोहरत के लिए 100% लाना जरूरी है । बल्कि सच तो ये है , पूरी दुनिया मे शायद ही आज तक कोई महान व्यक्ति ऐसा हुआ होगा, जिसने अपनी स्कूलिंग के दिनो मे 100% स्कोर किया हो ।

100% तो कभी "एल्बर्ट आइन्सटीन" को नही मिले, थाॅमस अल्वा ऐडीसन तो बेचारा स्कूल से ही निकाल दिया गया था।।

आज कल टॉपर छात्र छात्राओं भी उछल उछल कर मीडिया में अपना बखान करना नहीं भूलते। मीडिया उनका इंटरव्यू इस प्रकार होता है।

''मुझे जितनी उम्मीद थी उतने नंबर मुझे प्राप्त हुए हैं और में बहुत खुश हूं. इस सफलता का श्रेय मैं अपने अविभावक और शिक्षकों को देना चाहूंगी या चाहूंगा। जिन्होंने मुझे हर तरह से सपोर्ट किया. इसके साथ साथ में अपने स्कूल के टीचर को भी इसका श्रेय दूंगी जिन्होंने मुझे बराबर सहयोग किया। मुझे जब भी कुछ जानने की इच्छा हुई, मुझे स्कूल की टीचर द्वारा बताया गया। किसी तरह के डाउट्स क्लियर करने के लिए जब भी मैंने अपनी स्कूल टीचर से फोन पर भी बात की तो उन्होंने बराबर सपोर्ट किया। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए मैंने हर दिन 8 से 10 घंटे तक पढ़ाई की है और आगे मैं साइकॉलोजी ऑनर्स करना चाहती हूं।" इत्यादि.......etc....... ।

अब देखिए आगे ये टॉपर्स जो 100% मार्क्स ले कर आए हैं वो अपना जलवा किस क्षेत्र
में बिखेरते हैं।




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