सोवियत रूस का भाग रहे यूक्रेन पर वर्तमान समय में रूस के हमले से दुनिया का वैश्विक परस्थितियाँ तेजी से बदल रहा है अगर यही स्थिति रही तो विश्व के ज्यादातर देशों के बीच ध्रुवीकरण की कोशिश तेज हो जायेगी। जिसका परिणाम दुनिया के हर देश को भुगतना पड़ सकता है। ये न्यूज़ आप www.operafast.com पर पढ़ रहे हैं।
भारत जैसे विकासशील देश को इस युद्ध को रोकने के उपाय करने चाहिए। इस समय corona से अर्थव्यवस्था खराब है, यदि युद्ध लंबा चलता रहा तो पेट्रोल डीजल के दाम बहुत बढ़ जाएगा जिससे अर्थव्यवस्था और बिगड़ेगी। लेकिन देखा जाए तो युक्रेन ने कभी भी भारत का समर्थन नहीं किया था । जब मोदी जी ने कश्मीर से धारा 370 खत्म की थी तो यूक्रेन ने इसका विरोध किया था। और तो और भारत की आपत्ति के बावजूद यूक्रेन ने पाकिस्तान को आधुनिक तोप भी मुहैया करवाई थी।
लेकिन सवाल उठता है कि भारत को इस विवाद में रूस का पक्ष लेना चाहिए या यूक्रेन का ?
यह बेकार का प्रश्न है... किसी भी देश को हमेशा सिर्फ अपना पक्ष लेना चाहिए ।
यह पक्ष लेना, ना लेना ना तो मित्रता के परसेप्शन से चलता है ना अतीत में हुए लाभ-हानि, समर्थन-विरोध के गणित से । अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मित्रता शब्द का उतना ही महत्व है जितना वेश्या के कोठे पर प्रेम का । अंतरराष्ट्रीय संबंध सिर्फ अल्पकालिक या दीर्घकालिक लाभ के गणित से चलते हैं, और यह गणित लगाने के लिए मोदीजी अधिक सक्षम व्यक्ति हैं ।
पक्ष लेने में लाभ हो तो पक्ष लिया जाए, अन्यथा निष्पक्ष रहने के लिए बहुत अधिक शक्ति चाहिए होती है। द्वितीय विश्वयुद्ध में यूरोप में सिर्फ एक देश था जो निष्पक्ष था, स्विट्जरलैंड । क्योंकि वह निष्पक्ष रहना अफ्फोर्ड कर सकता था।आर्थिक रूप से भी सक्षम था, सामरिक रूप से भी, और उसे विश्वास था कि युद्ध का जो भी परिणाम हो ।
जो हमारे देश को करना है वह यह कि अपने आप को सामरिक रूप से मजबूत करना है । सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है। जो काम हमें करना है वह यह कि अपने आपको मानसिक रूप से मजबूत करना है । संघर्ष के लिए और कष्ट उठाने के लिए । हो सकता है कल को दाल महँगी हो जाये, पेट्रोल 200 रुपये लीटर मिले, रेल का भाड़ा तीन गुना हो जाये । तब आप सर झुका के, दाँत भींच के, मुठ्ठी तान के जमे रहते हैं या आपको 300 यूनिट फ्री बिजली याद आती है...इसी पर निर्भर करता है कि हमारा क्या बनेगा ।
युनिवर्सिटी है तभी तो मेडिकल शिक्षा के लिए भारत के हजारों छात्र यूक्रेन में पढ़ाई कर रहें हैं यानि यूक्रेन में चारों तरफ संपन्नता है अगर नहीं है तो सामरिक शक्ति ,मजबूत सेना , अत्याधुनिक हथियार और वहां की जनता में राष्ट्रवादी भावना यही कारण है कि मात्र दो घंटे में रुस ने यूक्रेन को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया यूक्रेन के सैनिक भाग खड़े हुए हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति आम लोगों से युद्ध लड़ने की अपील कर रहें हैं ।
इसके लिए सारी पाबंदियां भी हटा दी गई है। यूक्रेन आम नागरिकों को युद्ध लड़ने के लिए हथियार देने की बात भी कह रहा है पर मजाल यूक्रेन का एक भी नागरिक युद्ध लड़ने को तैयार हुआ हो , क्योंकि यूक्रेन के नागरिकों में इजराइल के नागरिकों की तरह राष्ट्रवाद की भावना ही नहीं है।
वह तो एशो आराम की जिन्दगी जीने के आदी हो चुके हैं। यूक्रेन के स्कूल कालेज, युनिवर्सिटी, बाजार, दुकान,आफिस सब बन्द कर दिये गये हैं। सब कारोबार चौपट हो गया है। कारखाने फैक्ट्री सब बन्द हो गये
सब कारोबार चौपट हो गया है कारखाने फैक्ट्री बंद हो गई लोग रोजगार तो क्या अपनी जान बचाने के लिए सिमित संख्या में मौजूद बंकरों में छुप रहें हैं । अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशनों में शरण ले रहें हैं। यानि सब कुछ होते हुए भी यूक्रेन आज जिंदगी की भीख मांग रहा है।
भारत के उन लोगों को सोचना चाहिए जो राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादियों को गाहे बगाहे गालियां देते रहते हैं तथा सिर्फ महंगाई, बेरोजगारी और आलू प्याज टमाटर तथा मुफ्त की योजनाओं को ही देश के विकास का पैमाना मान बैठे हैं। अभी कुछ ही दिनों पहले राहुल गांधी ने कहा था कि सेना की मजबूती अत्याधुनिक हथियारों के जखीरे इकट्ठा करने से देश का विकास नहीं होता । राहुल गांधी जैसे विपक्षी नेता को रुस यूक्रेन युद्ध से शाय़द थोड़ी सोचने समझने की शक्ति आ जाये , क्योंकि किसी भी देश के विकास का रास्ता उसकी सैनिक ताकत, सीमाओं की मजबूत सुरक्षा और अत्याधिक हथियारों से होकर निकलता है।
ये वही यूक्रेन है जो
1) कश्मीर मुद्दे पर UNO में भारत के खिलाफ वोट दिया था।
2) यूक्रेन ने परमाणु परीक्षण मुद्दे पर UNO में भारत के खिलाफ वोट दिया था।
3) यूक्रेन ने UNO की सिक्योरिटी कौंसिल में भारत की स्थायी सदस्यता के खिलाफ वोट किया था।
4) यूक्रेन पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करता है।
5) यूक्रेन अल कायदा को समर्थन देता है।
युक्रेन से भारतीय होने के नाते कोई भी सहानुभूति नही होनी चाहिए और उसका कारण भी है।
युक्रेन ने भारत का कभी भी साथ नही दिया। जब हमारे उपर प्रतिबन्ध लगा तो UNO मे उसने प्रतिबन्ध के पक्ष मे वोट किया।
इसके पास यूरेनियम का बाद भंडार था फिर भी बार बार मांगे जाने पर भी इसने कभी भी देना तो दूर हमारे तत्कालीन PM को अवहेलना तक किया था। सीधे मुँह बात तक नही किया, जबकि भारत अपनी ऊर्जा के लिए यूरेनियम खोज रहा था।
अब उसका क्या होता है इसपर मेरा कोई भी मत नही है। हां उसके नागरिको के साथ सहानुभूति अवश्य है। कमज़ोर युक्रेन (जो की अपने आप बना) के साथ वही हो रहा है तो नेहरू जी के समय 1947 से पहले और उसके बाद हुआ। अर्थात विभाजन और देश के सीमा पर अतिक्रमण।
इसलिए जो लोग यूक्रेन के समर्थन में दुबले हो रहे है उनको समझना चाहिए कि यूक्रेन हमारा एक दुश्मन है जिसने कभी भारत का साथ नही दिया ।
Good sir
ReplyDeleteBilkul sahi kaha aapane
ReplyDeleteBilkul sahi kaha aapane
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