सपा प्रमुख अखिलेश ने दलित नेता से गठबंधन क्यूं ठुकराया
आज समाजवादी पार्टी के नेता श्री अखिलेश यादव ने अपने सलाहकारों की बात मानते हुए चंद्रशेखर रावण की पार्टी आजाद समाज पार्टी से गठबंधन करने से मना कर दिया । इस बात को लेकर चंद्रशेखर रावण ने बोला कि अखिलेश यादव ने हमारी पार्टी से गठबंधन न करके दलित समाज का अपमान किया है। लेकिन अगर देखा जाए तो चंद्रशेखर रावण ने बसपा सुप्रीमो मायावती से भी बातचीत करने के लिए समय मांगते रह गए थे लेकिन मायावती जी ने बातचीत तो दूर बात भी नहीं की थी। ऐसे में दलित समाज का अपमान किसने किया अखिलेश यादव या मायावती ने । क्योंकि दोनों ने गठबंधन करने से मना कर दिया।
तेते पाँव पसारिये, जेती लाँबी सौर। समाजवादी पार्टी गठबंधन में कुछ सीट तो दे ही रहा होगा । ज्यादा माँग करने के वजह से बात नहीं बनी। चंद्रशेखर को चाहिए था की पहले खुद तो जीत के जाते ओर अपना समाज का प्रतिनिधित्व करते। उसके बाद धीरे धीरे अपनी पार्टी का विस्तार करते रहते । ये समाचार आप www.operafast.com पर पढ़ रहे हैं।
सोशल मीडिया में आ रही जानकारी के अनुसार अखिलेश यादव को उनके सलाहकारों ने समझाया कि आप वह भयानक गलती मत करो जो गलती आपके पिताजी ने की थी ।
और फिर अपने सलाहकारों की बात मानते हुए अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर रावण की पार्टी आजाद समाज पार्टी से गठबंधन करने से मना कर दिया ।
कांशीराम को इतने बड़े कद तक पहुंचाने में मुलायम सिंह यादव का सबसे बड़ा हाथ था यहां तक कि कांशी राम जिस कॉन्टेसा कार से चलते थे वह कॉंटेसा कार भी मुलायम सिंह यादव ने कांशी राम को दिया था ।
उस वक्त उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी और दलित कांग्रेस के कोर वोटर थे ।
कांशी राम उस वक्त दलित जागरण का काम करते थे लेकिन वह राजनीति में नहीं थे ।
जब मुलायम सिंह यादव ने कांशी राम को तुरूप का पत्ता बनाया और यह सोचा कि किसी तरह दलितों को कांग्रेस से काट दिया जाए और कांशी राम को पहली बार लोकसभा भी मुलायम सिंह यादव ने भेजा था । मुलायम सिंह यादव ने अपने गृह नगर इटावा में कांशी राम को पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ाया और उन्हें लोकसभा भेजा ।
धीरे-धीरे कांशी राम ने ऐसा चाल चला कि समाजवादी पार्टी को कई बार सत्ता से दूर कर दिया बाद में मुलायम सिंह यादव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह बहुत पछताते हैं कि उन्होंने कांशी राम को नेता बनाया उन्हें राजनीति में लाया उन्हें लोकसभा भेजें ।
अब अपने पिता की गलती से सबक लेते हुए अखिलेश यादव ने भी यही सोचा कि दलितों को कभी नेता मत बनाओ इन्हे सिर्फ पिछलग्गू की तरह काम लेते रहो और सत्ता में बने रहो।
Bahut khub sir ji thanks
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