बजट 2021 में 2 सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी, लेकिन अब सरकार ने 4 सरकारी बैंकों को निजीकरण के लिए शॉर्टलिस्ट किया है। बता दें कि दो बैंकों का 2021-22 में निजीकरण होगा। इस खबर से बैंकिंग शेयरों को पंख लग गए।
जिन 4 सरकारी बैंकों को शॉर्टलिस्ट किया गया है उनमें बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra), बैंक ऑफ इंडिया (BoI), इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank) का नाम शामिल है।
बैंक ऑफ महाराष्ट्र के 1.5 करोड़ ग्राहक हैं ! बैंक की पूरे भारत में 1874 ब्रांच हैं। वित्त वर्ष 2021 की दिसंबर तिमाही में बैंक ऑफ महाराष्ट्र का मुनाफा 13.9% बढ़कर 154 करोड़ रुपये हो गया।
इंडियन ओवरसीज बैंक का हेडक्वार्टर चेन्नई में है। इंडियन ओवरसीज बैंक का भी राष्ट्रीयकरण 1969 में हुआ।इंडियन बैंक ओवरसीज की पूरे भारत में 3219 शाखाएं थीं। बैंक की 6 विदेशी फॉरेन ब्रांच और रिप्रेजेंटेटिव ऑफिस हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक को अक्टूबर-दिसंबर 2020 तिमाही में 6,075 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ।
आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के अंतर्गत वर्ष 1992 से भारत सरकार द्वारा बैंकिंग क्षेत्र द्वारा बैंकिंग क्षेत्र में निजी बैंकों के प्रवेश की अनुमति दे दी गई है । अब एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करने के पश्चात् निजी बैंक भारत में अपना कारोबार कर सकते हैं ।
ये बैंक कम्पनी अधिनियम 1956 (वर्तमान में कम्पनी अधिनियम 2013) के अंतर्गत पंजीकृत होते हैं तथा इन पर बैंकिंग नियमन अधिनियम तथा रिजर्व बैंक अधिनियम लागू होता है । इन बैंकों की पूँजी 200 करोड़ रुपये होती है तथा इनके अंश प्रतिभूति बाजार में लिस्टेड होते हैं ।
बैंकों के निजीकरण से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होंगे:
1. बैंक अपनी पूंजी स्वयं जुटायेंगे जिससे सरकार पर वित्तीय दबाव में कमी आयेगी ।
2. अनुशासन में वृद्धि होगी तथा ग्राहकों को समुचित सुविधाएँ प्राप्त हो सकेंगी ।
3. बैंकों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तथा ग्राहक सेवा के स्तर में वृद्धि होगी ।
4. कर्मचारियो में लालफीताशाही कम होगी ।
5. बैंकों की लाभदायकता बढ़ेगी जिससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होगी ।
बैंकों के निजीकरण से निम्नलिखित दोष उत्पन्न हो जाएंगे:
1. तानाशाही को बढाना मिलेगा ।
2. कर्मचारियों में असंतोष बढ़ेगा तथा वे खुलकर विरोध करेंगे ।
3. सरकार के सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकेगी ।
4. बैंक केवल कुछ घरानों तक सीमित होकर रह जाएंगे ।
5. आम जनता को बेहतर सुविधाएँ प्राप्त नहीं हो सकेंगी ।
अतः सरकार को बैंकों का निजीकरण करते समय विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देना होगा तथा किसी भी हालत में सम्पूर्ण निजीकरण उचित नहीं ठहराया जा सकता है । चूंकि वर्ष 1969 से पहले बैंक निजी क्षेत्र में ही थे और उनकी कमियों को दूर करने के लिये इन्हें सरकारी क्षेत्र में लिया गया था ।
अतः भारतवर्ष जैसे विकासशील देश में निजी तथा सरकारी, दोनों बैंकों को विद्यमान होना चाहिये तथा सरकारी बैंकों में विद्यमान कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिये ।
सरकारी बैंकों (Public sector banks) के दो दिन पर हड़ताल पर चले जाने से लोगों को खासी परेशानी हो रही है। इन बैंकों से कैश विड्रॉल (Cash Withdrawal), डिपॉजिट (Cash Deposit), चेक क्लियरेंस (Cheque Clearance) और कारोबारी लेनदेन पर असर पड़ा है। सरकारी बैंकों ने अपने कस्टमर्स को बता दिया था कि उन्हें लेनदेन के लिए डिजिटल तरीकों (Digital Mode of Banking) का इस्तेमाल करना होगा। केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में 10 बैंकों का 4 बैंकों में विलय कर दिया था जिसके बाद सरकारी बैंकों की संख्या 12 रह गई थी। अभी इनका कंसॉलिडेशन (Consolidation) जारी है, ऐसे में निजीकरण से नुकसान हो सकता है।
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